Model Answer AS-3046 B.Com. LL.B. (Third Semester) Examination-2013 (Foundation Course-Hindi) प्र.१ – निम्िलिखित वस्तुनिष्ठ प्रश्िो के उत्तर दीजिये- १५*२=३० (i) (क) दे विागरी लिपि मिुष्य के भावों और पवचारों को संप्रेपित करिे का माध्यम है । (ि) दे विागरी लिपि में स्वरों की व्यवस्था में िहिे हृस्व,फिर दीर्घ,स्वर क्रम िूवक घ नियोजित है । इसके अनतररक्त स्वर और व्यंिि अिग-अिग लििे िाते है । (ii)(क) व्याकरणसम्मतता (ि) स्वाभापवक और सुबोध (ग) स्वायत्तता (र्) केंद्रोन्मुिता (iii) फकसी सुसंगठठत एवं गुंफित पवचार अथवा भाव के पवस्तार कों िल्िवि कहते है। इत्याठद (iv) वाल्मीफक तथा ब्राह्मण (v)(क) संक्षेिण स्वत: िूणघ होिा चाठहए (ि) संक्षक्षप्तता (ग) भािा की सरिता (र्)शुद्धता (ड) प्रवाह और क्रमबद्धता (vi) “िंडडत के र्र में र्ोर मूित घ ा का आचरण” तथा “दहु रा िाभ” (vii) ठहन्दी में व्यंििों की संख्या ‘41’ होती है । (viii) महादे व :- शम्भु, ईश, िशुिनत,लशव,महे श्वर,शंकर,चंद्रशेिर,भव,भूतेश,गगरीश,त्रििोचि। अजनि:- आग, िावक, अिि, वायुसिा, दहि, धूमकेतु, कृशािु, वजह्ि। (ix) हररशंकर िरसाई। (x) चतुभि ुघ तथा अनतगथ। (xi) मुहापवरा। (xii) िशा, िंच िरमेश्वर, िुस की रात, बड़े र्र की बेटी, ईदगाह, ठाकुर का कुआ इत्याठद (xiii) दो अिररगचत व्यजक्त। (xiv) गि ु शेर िााँ शािी (xv) अनतगथ:- मेहमाि, साध,ु यािी, अिररगचत व्यजक्त, यज्ञ में सोमिता िािे वािा अजनि, राम का िोता या कुश का बेटा। अिेक्षा:- इच्छा, आवश्यकता, आशा, बनिस्ित इत्याठद, प्र.२ लघुत्तरी प्रश्न - (i) सप्रसंग व्याख्या – कभी ऐसा ........... िर ऐसा कभी िहीं हुआ था। िेिक का िाम – हररशंकर िरसाई की पवधा – कहािी ५*४=२० व्याख्या:- यह एक सामाजिक व्यंनय कहािी के रूि मे लििी गयी है । अंधपवश्वास स्वगघ व िरक को िेकर लििा गया हैं। ररश्वत िोरी को चमघ सीमा तक बड़ाकर ठदिाया गया है । भारतीय संस्कृनत िर ररश्वत िोरी फकस कदर हावी है । सामान्य आदमी का िीिा दभ ु र हो गया है इत्याठद। (ii)(क) दो लमिों की आिसी लमिता को िेकर लििी गयी कहािी है । आिसी झगड़े के नििटारे , गााँव की िंचायत और िंच के व्यजक्त को सम्माि ठदया गया है । गााँव के व्यजक्त फकस प्रकार गित या सही िैसिा सि ु िे के बड़ उस िैसिे को ईश्वर के समाि िैसिा मािा िाता है । ररश्ते और भाई-चारे न्याय के आगे झक ु िाते है । (iii) कहािी का िेिि व प्रकाशि विघ, ििों का पववरण, िेिक िे ररश्वत िोरी की समस्या को बेहतर संिीदगी से ठदिािे का प्रयास फकया हैं। िौकरी करिे के बाद एक गरीब व्यजक्त िें शि के लिए फकस तरह आफिस का चक्कर िगता है िहां केवि उसे आस्वासि लमिता है िाभ िहीं। गरीबों की दशा तथा ठदशा का गचिण फकया गया है । अंत मे भोिाराम िैसा ि लमििे से तंग आकर पवमार िड़ िाता है , र्र में िािे को कुछ िहीं रहता है र्र सारे सामाि बेचकर िररवार का भरण-िोिण करिा िड़ता हैं। अन्ततः भोिारम की मत्ृ यु होती है और उसकी आत्मा आफिस के िाइिों में रह िाती है । (iv) हमारे समाि मे िोग यही िािते है फक कम्प्यूटर की भािा लसिघ अाँग्रेिी है और लिपि रोमि। ठहन्दी भािा पवश्व की अिेक भािाओं की तुििा में वाक्य पवज्ञाि, ध्वनि पवज्ञाि, और रै खिक दृजष्ट से अनर्क सुनियोजित है । दे विागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है । कम्प्यूटर को ठहन्दी में संगणक कहा िाता है । इस सूि को आधार मािकर ध्वनियों के आधार िर ११ भारतीय भािाओं के लिए एक ऐसा समजन्वत कोड पवकलसत फकया गया। कंु िीिटि को ध्वन्यात्मक कंु िीिटि (िोिेठटक की बोडघ) कहते है । इस समय यह कोडडंग प्रणािी सी-डैक के जिस्ट, िीि, इज़्म आठद। ठहन्दी शब्द कोशों की वणघक्रम िद्धनत के अिुसार अिुस्वार वािे शब्द क्रम में सबसे िहिे आते है । आधा ‘ि’ वािे शब्द सबसे अंत मे। (v) आधनु िक युग मे। संक्षेिण का महत्व, कायाघियों में संक्षेिण का अगधक प्रयोग फकया िाता है । संक्षेिण में ‘मूि’ के उन्हीं शब्दो को रििा चाठहए, िो अथघव्यंििा में सहायक हों। भािा सरि होिी चाठहए, मुहावरे दार और अिंकाररक िहीं। मूि तथ्य से असंबद्ध और अिावश्यक शब्दों को छांटकर निकाि दे िा चाठहए। (vi) आधनु िक युग में िल्िवि का उियोग ठदि-प्रनतठदि र्टता िा रहा है । िल्िवि के लिए मूि अवतरण के वाक्य, सूजक्त, िोकोजक्त, अथवा कहावत को ध्याििूवक घ िढ़िा चाठहए कायाघियों मे इसका प्रयोग िहीं फकया िाता । िल्िवि व्यासशैिी की होिी चाठहए, समासशैिी की िही। सभी व्यजक्त समय की बचत करिा चाहते हैं क्योंफक आधनु िक युग मे सबको समय का अभाव है । (vii) दे विागरी लिपि में स्िष्टता की पवशेिता भी है प्रत्येक लिखित वणघ उच्चररत भी होते हैं। िो िढ़ा िाता है वही लििा िाता। यह एक वैज्ञानिक लिपि है । आधार संस्कृत होिे के कारण इसे दे व वाणी भी कहा िाता है इसके प्रत्येक वगघ में िहिे अल्िप्राण व्यंिि आता है फिर उसका महाप्राण व्यंिि आता है । अन्य लिपियों में ऐसा िहीं है । (viii) आधनु िक युग में अिुवाद का अगधक से अगधक प्रयोग फकया िाता है क्योंफक मीडडया, दरू संचार तथा टे लिपविि की आवश्यकता िे इसकी उियोगगता बढ़ा दी है । र्र बैठे आि कई संस्कृनतयों, िररवेश, रहि-सहि, वेश-भूिा का अध्ययि कर सकते है । समाि में ठदिों-ठदि इसकी उियोगगता बढ़ती िा रही है । प्र.३:- दीघघ उत्तरीय प्रश्न - २*१५=३० (i) यह पवचार िंडडत िवाहिाि िेहरू का है । राष्र की आत्मा सशक्त और दीर्घिीवी होती है । मिुष्य के साथ िीिा-मारिा सदा िगा रहता है। राष्र की शजक्त उसके िागररक, उसकी संस्कृनत, उसका साठहत्य, उसकी िरम्िरा और उसकी ऐनतहालसक चेतिा में है । ‘राष्र’ की िरम्िरा और इनतहास की चेतिा ही प्रधाि होती है । व्यजक्त के मरिे से राष्र िहीं मरता। िश्वर व्यजक्त के द्वारा राजष्रयता की सांप्रदानयक िारे बािी तो और भी बड़ी मि घ ा है । िरू त िारी के ििमते-मरिे िर भी राष्र अमर है , बजल्क राष्र की िो संस्कृनत और राष्रीयता है , वह सारे राष्र के लिए िागररकों के लिए समाि भाविा रिती है । (ii) ‘बस्तर में बार्’ संस्मरण के िेिक का िाम तथा प्रकाशि विघ। कोसी को बार् द्वारा मारे िािे के बाद गााँव में वािों आिसी एकता की बात िेिक द्वारा दशाघया गया है एकता पवचार का वणघि कीजिए। अंधपवश्वास आि भी अिुसूगचत िििानतयों मे फकस कदर हावी है इसका एक प्रमुि कारण है लशक्षा और िागरूकता का अभाव। शािी िी िे बेहत्तर संिीदगी से आठदवालसयों की िररजस्थनतयों की संवेदिा का आठदवासी का िििीवि बेहद अस्त-व्यस्त है । िररचय कराया है । आधनु िक युग में भी (iii) आधनु िक युग में अिुवाद का महत्व बढ़ता िा रहा है क्योंफक अिुवाद के द्वारा िक्ष्य भािा से स्रोत भािा की संस्कृनतयों, वातावरण िररवेश, रहि-सहि,िोकोजक्त, मुहावरा, तीि- त्योहार आठद का िता चिता है । ज्ञाि-पवज्ञाि के इस समुन्ित काि मेँ अिुवाद की प्रासंगगकता िर पवचार होिा चाठहए। अिुवाद साथघक अथवा प्रयोिि युक्त िुिकघथि है । आदशघ अिुवाद सीररंि की वह सुई है िो सीररंि की दवा को ज्यों-का-त्यों मरीि के शरीर में िहुाँचा दे ती है । Prepared by Mr. Suresh Kumar
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